मनरेगा में बड़ा घपला: बिना मास्टर रोल और रॉयल्टी के चल रहा घटिया PCC रोड निर्माण

पांच जिम्मेदारों की मिलीभगत उजागर, शासन की राशि का बंदर बांट करने का प्रयास



अनूपपुर। जनपद जैतहरी की ग्राम पंचायत सोन मौहरी एक बार फिर सुर्खियों में है—और इस बार वजह है मनरेगा योजना के अंतर्गत हो रहे भ्रष्टाचार का खुला खेल। वार्ड क्रमांक 3 में लगभग ₹5 लाख की लागत से बन रहे PCC रोड निर्माण कार्य में कई अनियमितताएं उजागर हुई हैं।

हमारे स्थानीय संवाददाता द्वारा की गई मौके की जांच में सामने आया कि निर्माण स्थल पर शाइन बोर्ड नहीं लगाया गया है, जो शासन की अनिवार्य शर्तों में शामिल है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मास्टर रोल तैयार किए बिना ही मजदूरी भुगतान (लेबर पेमेंट) किया जा रहा है, जबकि लगभग ₹1 लाख की मजदूरी राशि दर्शाई जा चुकी है।

घटिया निर्माण की पोल खुली — न मुरुम, न समतलीकरण, चोरी की रेत से काम

जांच के दौरान पाया गया कि सड़क निर्माण से पहले समतलीकरण नहीं किया गया है, न ही मुरुम डाला गया। निर्माण में सात-एक के अनुपात से मसाला तैयार किया जा रहा है, जो कि तकनीकी और शासकीय मानकों के विरुद्ध है। रेत की रॉयल्टी भी मौके पर मौजूद नहीं मिली। ग्रामीणों के अनुसार, निर्माण कार्य में उपयोग की जा रही रेत स्थानीय सोन नदी से चोरी-छिपे बिना रॉयल्टी के लाकर गिराई जा रही है।

सरपंच और उपसरपंच ने खुद स्वीकारा — मुरुम कभी डाला ही नहीं गया

जब इस मुद्दे पर ग्राम सरपंच बुधन बाई और उपसरपंच नरेंद्र सिंह राठौर से सवाल किया गया तो उन्होंने साफ तौर पर कबूल किया कि "ग्राम सोन मौहरी में किसी भी रोड निर्माण में मुरुम का उपयोग कभी नहीं किया गया है।"

यह स्वीकारोक्ति अपने आप में बड़ा सवाल खड़ा करती है — यदि मुरुम स्वीकृति राशि का हिस्सा है, और उसका उपयोग कभी नहीं हुआ, तो फिर यह राशि कहाँ और किसने निकाली? यह सीधे-सीधे लाखों रुपए के मुरुम घोटाले की ओर इशारा करता है।

जब ग्राम सचिव महेंद्र त्रिपाठी, जो कि पंचायत में अस्थायी पदस्थ हैं, से बात करने का प्रयास किया गया तो वे निर्माण स्थल से नदारद पाए गए। वहीं तकनीकी सहायक (इंजीनियर) को फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन उठाना तक मुनासिब नहीं समझा।

उपसरपंच द्वारा बताया गया कि “तीन इंच मसाला गिराया गया है”, जबकि मौके पर यह मात्र नाम भर का दिखाई दिया — जिसका वीडियो भी मौजूद है। यह भी बताया गया कि हर निर्माण कार्य में सोन नदी से ही बिना रॉयल्टी वाली रेत डाली जाती है, जिससे सरकार को प्रत्यक्ष राजस्व हानि हो रही है।

अब सवाल उठता है—क्या जिम्मेदारों पर होगी कोई कार्यवाही?

जब एक पंचायत में सचिव, सरपंच, उपसरपंच, रोजगार सहायक और तकनीकी अधिकारी मिलकर भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं, तो इसका सीधा नुकसान जनता, शासन और सरकारी खजाने को होता है। अब देखना यह है कि मनरेगा और पंचायत विभाग के उच्च अधिकारी इस पर क्या संज्ञान लेते हैं — और क्या इन अनियमितताओं पर कार्रवाई होती है या फाइलों में दबा दी जाती है?

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